सार्थकता होती तो मिलती अहसास में ही कहीं ,
मर्म समझा ही नहीं.. बहता रहा दर्द का दरिया.
मसीहा होकर जो दर्द नहीं समझा ,मसीहा कैसा
हम गरीबों के अहसास में बहता है दर्द का दरिया .-- विजयलक्ष्मी
मर्म समझा ही नहीं.. बहता रहा दर्द का दरिया.
मसीहा होकर जो दर्द नहीं समझा ,मसीहा कैसा
हम गरीबों के अहसास में बहता है दर्द का दरिया .-- विजयलक्ष्मी
No comments:
Post a Comment