वो मेरी थी जल गयी बस्तियां ,धुआं धुंआ सी जिन्दगी ,
उसकी तो दिल्लगी हुयी हमारी दिल की लगी सी बन्दगी .
लकीरें हाथ की पढनी नहीं आई उसकी पैरहन बनी लकीरे
वाबस्ता जिस गली से थे जर्रे जर्रे से ही बंधी सी जिन्दगी .
दर्द ए बयार उठती लगी थी आज चमन के फूल गुमशुदा
कलियों, तितलियों को बसन्त बसन्ती ढकी सी जिन्दगी .
हरजाई कह दूं अहले वफा को कैसे बेमुरव्वत है जमाना
दर औ दीवार भी बन्दगी से बा-दस्तूर रंगी सी जिन्दगी .
गम ए राह में गुमराह यादें समन्दर की लहरों सी तहरीर
मुस्कुराहट की आहट पर कदमबोशी में पगी सी जिन्दगी .-- विजयलक्ष्मी
उसकी तो दिल्लगी हुयी हमारी दिल की लगी सी बन्दगी .
लकीरें हाथ की पढनी नहीं आई उसकी पैरहन बनी लकीरे
वाबस्ता जिस गली से थे जर्रे जर्रे से ही बंधी सी जिन्दगी .
दर्द ए बयार उठती लगी थी आज चमन के फूल गुमशुदा
कलियों, तितलियों को बसन्त बसन्ती ढकी सी जिन्दगी .
हरजाई कह दूं अहले वफा को कैसे बेमुरव्वत है जमाना
दर औ दीवार भी बन्दगी से बा-दस्तूर रंगी सी जिन्दगी .
गम ए राह में गुमराह यादें समन्दर की लहरों सी तहरीर
मुस्कुराहट की आहट पर कदमबोशी में पगी सी जिन्दगी .-- विजयलक्ष्मी
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