Tuesday, 8 April 2014

" जो मुहं से बोल दिया ...भगवान का हुक्म हो गया हमारे वास्ते "

आज की रोटी का इंतजाम तो हो गया जैसे तैसे 
कल जिन्दा रहे तो कोशिश जरूर करेंगे 
गर किसी दिन साँस लौट कर नहीं आई तो 
क्या आप हमारा माफीनामा कबूल करेंगे 
वैसे अर्जी लगाई है खुदाई दरबार में भी 
इक अहसान ये, कब कितना वसूल करेंगे
मेरे मोहसीन हाथ और जज्बात काट लिए गये मेरे 
ताज मुमताज का हुआ ..क्या मेरा सलाम कैसे कबूल करेंगे .
यूँभी हम गरीबों की औकात इतनी ही है 
चीखते भी ज्यादा है पिटते भी ज्यादा है 
मरते भी हैं पर जड़ से खत्म नहीं हुए
खेत में खड़ी खरपतवार देखी है न ..हम वोही हैं
ये जो कौम हैं न हमारी ..
साली मरती भी नहीं ..इन्हें न तो अटैक आता है
न रक्तचाप सताता ...
उलटे बढ़ा देता होगा आपसे जहीन लोगो का
निरे गिरे हुए दिमाग के लोग ...
औकात दो कोडी की नहीं ..बघारते है आसमान को छूने की तारे तोड़ने की
सच बात तो ये साहब ..चाँद को छूने की भी सोची तो मैला हो जायेगा
क्यूंकि हम गंदे लोग ..
क्या जाने ...ज्ञान की बाते ..क्या करे ..
स्कूल के आगे पीछे से गुजरे हैं बस
भीतर नहीं गये कभी ..
फिर पढ़ाई लिखाई कैसी
कला अक्षर भैंस बराबर ..
जो मुहं से बोल दिया ...भगवान का हुक्म हो गया हमारे वास्ते --विजयलक्ष्मी 

1 comment:

  1. आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (11.04.2014) को "शब्द कोई व्यापार नही है" (चर्चा अंक-1579)" पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, वहाँ पर आपका स्वागत है, धन्यबाद।

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