चल उठ अब प्यासे की प्यास का इंतजाम हो गया ,
मुहब्बत मिल गयी अजीज़ की तू बदनाम हो गया |
मापना था समन्दर तेरे अहसास का गहरा कितना
उथला ही निकला तू भी ...गन्दला तालाब हो गया |
मैहर सूरज की हुयी तो .. इन्तजार करना सहर की
अंधेरो से निकल मुंडेर हुयी सुनसान संसार सो गया|
अब क्यूँ बैठा हैं तू , ...आँख में उजाले की आस लिए
घर पत्थर के हुए अब क्यूँ दिल से अहसास खो गया |
जिसके सजदे में ईमान गया तिरा.चातक हुआ मन
टिटहरी की चीख सुन उसका गुम आफ़ताब हो गया |
--- विजयलक्ष्मी
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