"दीवानगी ये कैसी ,हम खुद से लापता हो चुके हैं
कैसे रुकेगा तुफाँ ......जब दिल में ही सुराग है ये
दम घुटने से नहीं मरेंगे ,न यूँ इन्तजार से खुदारा
मिटता नहीं जो मरके भी ...देखो वहीं ही दाग है ये
पाकीजगी रही सदा ,पूजा औ अकीदत ए तमन्ना
जलता सूरज ...रूह के सीने में जलता अलाव है ये
याद की कश्ती है ,सवार बिन पतवार लहर लहर
एतबार रख अपने पास ........गहरता तूफ़ान है ये
बुझेगा हर रोशन सितारे के एतमाद ए करम होकर
अँधेरी राहो में जलता .............. वही चिराग है ये "- विजयलक्ष्मी
कैसे रुकेगा तुफाँ ......जब दिल में ही सुराग है ये
दम घुटने से नहीं मरेंगे ,न यूँ इन्तजार से खुदारा
मिटता नहीं जो मरके भी ...देखो वहीं ही दाग है ये
पाकीजगी रही सदा ,पूजा औ अकीदत ए तमन्ना
जलता सूरज ...रूह के सीने में जलता अलाव है ये
याद की कश्ती है ,सवार बिन पतवार लहर लहर
एतबार रख अपने पास ........गहरता तूफ़ान है ये
बुझेगा हर रोशन सितारे के एतमाद ए करम होकर
अँधेरी राहो में जलता .............. वही चिराग है ये "- विजयलक्ष्मी
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