कभी सूखे हुए तालाब का चेहरा देखा है !
उगते हुए सूरज का रंग सुनहरा देखा है !!
भूख भूखी नहीं मिली होगी तुम्हे कभी !
क्या प्यासे समन्दर को तरसते देखा है !!
हथेली पर रेखाएं हमारी खींच दी किसने !
लिखा हुआ मिटते यहाँ किस ने देखा है !!
तू वृक्ष बना था जब एक घोसला था मेरा !
महक ढूंढती हूँ वही किसने उड़ते देखा है !!
गिनती होती है मुहब्बत में मालूम नहीं !
शून्य हूँ मैं क्या तुमने भी शून्य देखा है !!.--- विजयलक्ष्मी
उगते हुए सूरज का रंग सुनहरा देखा है !!
भूख भूखी नहीं मिली होगी तुम्हे कभी !
क्या प्यासे समन्दर को तरसते देखा है !!
हथेली पर रेखाएं हमारी खींच दी किसने !
लिखा हुआ मिटते यहाँ किस ने देखा है !!
तू वृक्ष बना था जब एक घोसला था मेरा !
महक ढूंढती हूँ वही किसने उड़ते देखा है !!
गिनती होती है मुहब्बत में मालूम नहीं !
शून्य हूँ मैं क्या तुमने भी शून्य देखा है !!.--- विजयलक्ष्मी
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