Wednesday, 2 April 2014

अर्थ ही व्यर्थ बता गया है ,,,,


हमे
जो नशा चढ़ा है 
उतरता ही नहीं ,
जाने ..
क्या मिला गया है पिलाने वाला !
ढूँढ़ता ही रहा 
मेरे कदमों की हदे वो 
हुनर ...
कत्ल भी रखता है जिलाने वाला !
भूख है 
दिल में
नजरों को प्यास भी है
चाल
सियासती खेलता है खिलाने वाला !
समझ से परे
है
तमाशाई रूह की
न मालूम
जहर या दवा है वो
रिश्ता दर्द का दे गया है सताने वाला !
स्नेहसिक्त थे
कदम
गड गये जमी में
महंगे हुए थे
शब्द 

अर्थ ही व्यर्थ बता गया है पढाने वाला !--- विजयलक्ष्मी 

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