"बोलो ,अब ख्वाब कहाँ समाये ,जब नींद ही खो जाये ,
हमारी पलकों पर तो बस इन्तजार ठहर गया साहिब !!
मुखर होकर झूठ खड़ा दिखता है,हो काँधे सवार सच के,
सच की आँख में तो बस इन्तजार ठहर गया साहिब !!
खिलते गुलों पर निगेहबानी की चाहत लिए बैठा है जो ,
नासूर, दर्द औ चुभन दिल में बेशुमार ठहर गया साहिब!!
गाथा इश्क की सुनती नहीं जो आत्मा भी झकझोर उठे ,
अब देह पर नजर बन दिल का इकरार ठहर गया साहिब !!
रेतीले महल बनेंगे तो ढह जायेंगे हर लहर के साथ साथ ,
पत्थर पे चोट की तुमने जख्म इसबार ठहर गया साहिब !!
रमता जोगी हूँ तेरी मुकद्दस चौखट का कदम दर कदम ,
पथरीली सी राह मगर.. ये गुनहगार गुजर गया साहिब !!-- विजयलक्ष्मी
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