" वो कोई और ही होंगे जो तिरकर निकल जाते है ,
हम तो हर लहर के साथ और भी गहरे डूब जाते है ||
हम तो हर लहर के साथ और भी गहरे डूब जाते है ||
चुप्पी हो तुम्हारी आवाज हो या साथ हो खुदारा
न पार हुए न किनारा ही मिला मझधार डूब जाते है||
न पार हुए न किनारा ही मिला मझधार डूब जाते है||
खो चुकी हूँ यूंतो ढूँढने की तमन्ना भी क्या करूं
यादो का समन्दर है यहाँ तन्हा अकेले में डूब जाते है||
यादो का समन्दर है यहाँ तन्हा अकेले में डूब जाते है||
शिकवा ठहरा तन्हाई में उनको तो अकेलेपन का
तुम ठहरे तन्हा हम तन्हा तुम्हारी तन्हाई में डूब जाते हैं||
तुम ठहरे तन्हा हम तन्हा तुम्हारी तन्हाई में डूब जाते हैं||
मैं बियाँबा भी हूँ जंगल भी हूँ तराना हूँ रहनुमाई का
बजते सितार से दिल की तार पे उन सुरों में डूब जाते हैं|| " --- विजयलक्ष्मी
बजते सितार से दिल की तार पे उन सुरों में डूब जाते हैं|| " --- विजयलक्ष्मी
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