Tuesday, 14 October 2014

" ....... डूब जाते हैं "

" वो कोई और ही होंगे जो तिरकर निकल जाते है ,
हम तो हर लहर के साथ और भी गहरे डूब जाते है ||

चुप्पी हो तुम्हारी आवाज हो या साथ हो खुदारा
न पार हुए न किनारा ही मिला मझधार डूब जाते है||

खो चुकी हूँ यूंतो ढूँढने की तमन्ना भी क्या करूं
यादो का समन्दर है यहाँ तन्हा अकेले में डूब जाते है||

शिकवा ठहरा तन्हाई में उनको तो अकेलेपन का
तुम ठहरे तन्हा हम तन्हा तुम्हारी तन्हाई में डूब जाते हैं||

मैं बियाँबा भी हूँ जंगल भी हूँ तराना हूँ रहनुमाई का
बजते सितार से दिल की तार पे उन सुरों में डूब जाते हैं||
" --- विजयलक्ष्मी

No comments:

Post a Comment