Wednesday, 15 October 2014

" शिफत होती गर हुनरमंदी की करीने से दिखती "




" ताजमहल तुम्हे देता होगा पैगाम ए मुहब्बत 
मुझे तो कब्र ही नजर आती है इंसानियत की ||


आसमान में अटकी हुई दो रोटियां लुभाती है 
देखली किस्मत से किस्सागोई रूमानियत की ||


उडती पतंग मुस्कुराहट लाती है चेहरों पर सदा 
उलझ अटकी फटी रंगत डोर मशरूफियत की ||


दर्द ए निगार निगाह बख्शी ख्वाब ओ अलम यूँ 
मचे शोर दैर ओ हरम देहलीज महरुमियत(1) की ||


शिफत होती गर हुनरमंदी की करीने से दिखती 
फजल ठहरा तौर ए राह ख्वाब ए रूहानियत की ||" 

 ----- विजयलक्ष्मी 
(1) ----> . the tiniest chance, its only purpose is to glorify the meaning of human existence.



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