" ख्वाब बंद कर लिए है पलको में ,
शब्दों की तलवार चलाओ उनपर
गुनहगारी की सजा कोई होगी जरूर
न्याय की गुहार लगवाओ उनपर
उठाओ गांडीव ...हे पार्थ !बढ़ चलो
सिद्ध होवो गिद्ध की आँख है तुमपर
एक और महाभारत रच डालो
कोई द्रोपदी को छेड़े ,मरण कर डालो
दुश्मन को चेतावनी दो ,न सुने गर
सन्धानो बाण सटीकता से उनपर
चिंगारी उठे तो लक्ष्मीबाई सा युद्ध हो
देश जुड़े तो पटेल सा सिद्ध हो
देशवाद पनपे दिलों में भगत सा
आजाद सा भरोसा आजादी का
सुभाष सी फौलादी विश्वसनीयता लिए
अब्दुल हमीद बनने की तमन्ना
बचपन का वो चिमटा खरीदना माँ की खातिर
मिटाना होगा जड़ से ही वो शातिर
जो जमा है देश को उजड़ने की खातिर
आजादी का सही अर्थ जड़ता लिए है आज भी
विकास की राह मद्धम पड़ी है आज भी
उठो ,चलो कर्म पूजा करो " --- विजयलक्ष्मी
शब्दों की तलवार चलाओ उनपर
गुनहगारी की सजा कोई होगी जरूर
न्याय की गुहार लगवाओ उनपर
उठाओ गांडीव ...हे पार्थ !बढ़ चलो
सिद्ध होवो गिद्ध की आँख है तुमपर
एक और महाभारत रच डालो
कोई द्रोपदी को छेड़े ,मरण कर डालो
दुश्मन को चेतावनी दो ,न सुने गर
सन्धानो बाण सटीकता से उनपर
चिंगारी उठे तो लक्ष्मीबाई सा युद्ध हो
देश जुड़े तो पटेल सा सिद्ध हो
देशवाद पनपे दिलों में भगत सा
आजाद सा भरोसा आजादी का
सुभाष सी फौलादी विश्वसनीयता लिए
अब्दुल हमीद बनने की तमन्ना
बचपन का वो चिमटा खरीदना माँ की खातिर
मिटाना होगा जड़ से ही वो शातिर
जो जमा है देश को उजड़ने की खातिर
आजादी का सही अर्थ जड़ता लिए है आज भी
विकास की राह मद्धम पड़ी है आज भी
उठो ,चलो कर्म पूजा करो " --- विजयलक्ष्मी
खुबसूरत रचना
ReplyDelete:)
सब थे उसकी मौत पर (ग़जल 2)