Friday, 17 October 2014

अब हवा बन उड़ गया गम ...नजरों से दीदार हुआ जब |
तुमबिन दर्द भी बरसा बादलों सा तेरा इंतजार हुआ जब ||

तुमको कितना अपना कह दूँ मुश्किल इजहार हुआ अब |
तुम बिन इन सांसों का आना, जीना ही बेकार हुआ अब ||

मतलब क्या समझाऊँ तुमको ,पल पल बेकरार हुआ जब |
नयनों को दर्पण कर बैठे हम ,नजरों से इजहार हुआ जब ||

जख्म करीने से बैठे थे मन के आँगन में सत्कार हुआ जब |
झूल गया मन सागर बन, ख्वाब रुपैहला पतवार हुआ जब ||

चटक चाँदनी बिखरी अंगना ,खुद अपना संसार हुआ जब |
नाच उठा मन मयूर, पतझड बिछड़ा जीवन बहार हुआ जब ||....विजयलक्ष्मी 

No comments:

Post a Comment