"उठते अहसास
सुनती हुयी आवाज
और महकना आपका
जैसे कोई पुष्प हो
पहली बयार का
और पहली बरसात गुनगुनाती हो जैसे
दे जाता है सौंधापन मन को
विकल धरा मन को गीलापन
जैसे छलक उठे गगरी जल की
और ...
एक खुशबू
ओस सा निर्मल निश्छल अंतर्मन
खिल उठता है
तुलसी के बिरवे में लगा पुष्प हो
प्रथम बसंत का ".-- विजयलक्ष्मी
सुनती हुयी आवाज
और महकना आपका
जैसे कोई पुष्प हो
पहली बयार का
और पहली बरसात गुनगुनाती हो जैसे
दे जाता है सौंधापन मन को
विकल धरा मन को गीलापन
जैसे छलक उठे गगरी जल की
और ...
एक खुशबू
ओस सा निर्मल निश्छल अंतर्मन
खिल उठता है
तुलसी के बिरवे में लगा पुष्प हो
प्रथम बसंत का ".-- विजयलक्ष्मी
No comments:
Post a Comment