तुम्हे मुबारक ख्वाब लिख दिए तुम्हारे ,
हमे तन्हाईयाँ भी रास आने लगी है
नयन में नमी दिल में शोर बहुत हमारे,
यादें अहसास के घरौंदे सजाने लगी हैं
मौसम का क्या है रुख बदलता रहता है
हम बा-वफा नहीं है परछाई बताने लगी है
हमारे छान कच्चे कच्ची दीवारे घर की
पनीले हुए अहसास बताने लगी है
रौनक ए महफिल हिस्से नहीं अपने
तन्हाई हमारी गुनगुनाने लगी है .-- विजयलक्ष्मी
हमे तन्हाईयाँ भी रास आने लगी है
नयन में नमी दिल में शोर बहुत हमारे,
यादें अहसास के घरौंदे सजाने लगी हैं
मौसम का क्या है रुख बदलता रहता है
हम बा-वफा नहीं है परछाई बताने लगी है
हमारे छान कच्चे कच्ची दीवारे घर की
पनीले हुए अहसास बताने लगी है
रौनक ए महफिल हिस्से नहीं अपने
तन्हाई हमारी गुनगुनाने लगी है .-- विजयलक्ष्मी
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