क्रांति की तमन्ना लिए आज के किरदार ,
देखते नहीं है क्यूँ खुद का व्यवहार ...
झूठ के कांधे पर सत्य का जनाजा धरा ,
मगर झूठ का ही चलता है व्यापार...
रोता रहा सच बीमार हुआ बुरी तरह से,
कहते सुना बस वक्ती हुआ है बुखार ...
ये ख्वाब सी ही है दुनिया सारी सुना मैंने ,
आँख खुलने का मुझे भी है इन्तजार ...
माना ,मौत जीवन सफर का अंतिम पडाव है ,
घोटाला परम्पराओ के वहां भी जुड़े है तार ...-- विजयलक्ष्मी
देखते नहीं है क्यूँ खुद का व्यवहार ...
झूठ के कांधे पर सत्य का जनाजा धरा ,
मगर झूठ का ही चलता है व्यापार...
रोता रहा सच बीमार हुआ बुरी तरह से,
कहते सुना बस वक्ती हुआ है बुखार ...
ये ख्वाब सी ही है दुनिया सारी सुना मैंने ,
आँख खुलने का मुझे भी है इन्तजार ...
माना ,मौत जीवन सफर का अंतिम पडाव है ,
घोटाला परम्पराओ के वहां भी जुड़े है तार ...-- विजयलक्ष्मी
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