अब हर भरम से छूट रहे है धीरे धीरे ,
मिट रही हैं मेरे अपने हाथों की लकीरें .
तेरे हाथों में कुछ लिखा हो नहीं मालूम
तस्वीर मेरी है लिखी है औरों की तकदीरे.
तकरीर हमे खुदाई की सुनाई जाती है
सामने जलती है चूल्हे में सभी तहरीरे .
भूख आढ़तिये के पास गिरवी रखदी
पैरों में बाँधली अपने सिद्धांत की तदबीरे .
अदावत ये सुना कहते हम गुलाम नहीं ,
गुलामी के रंग की दिखाता है अब जंजीरें ...- विजयलक्ष्मी
मिट रही हैं मेरे अपने हाथों की लकीरें .
तेरे हाथों में कुछ लिखा हो नहीं मालूम
तस्वीर मेरी है लिखी है औरों की तकदीरे.
तकरीर हमे खुदाई की सुनाई जाती है
सामने जलती है चूल्हे में सभी तहरीरे .
भूख आढ़तिये के पास गिरवी रखदी
पैरों में बाँधली अपने सिद्धांत की तदबीरे .
अदावत ये सुना कहते हम गुलाम नहीं ,
गुलामी के रंग की दिखाता है अब जंजीरें ...- विजयलक्ष्मी
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