रंग खिला रहे है गुल रंगीले आंगन में मेरे ,
जैसे स्वप्न सलोने सजते है नैनो में तेरे .
पंछी बन मन चहक उठा करता किलोल
जब मधुर स्मित सी खिलती होठो पे तेरे
शरमाई सी हया पलकों पर आ कर बिखरी
जैसे अलबेली तितली इठलाई घरोंदो में मेरे
कुछ ख्वाब रुपहले बन बैठे मन के भीतर
छलकी खुशियाँ उद्वेलित ह्रदय झरनों में मेरे
इक आंगन नहीं महके तो मुश्किल हंसना
खो जाने दे हर गम को यूँही अब हाथों से तेरे .---- विजयलक्ष्मी
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