Saturday, 4 January 2014

यथार्थ से परे जहां गगन धरा से मिला

सत्य ,शौर्य यात्रा .....जीवन नकारात्मकता के फूल 
बिखरता दम्भ ,सौन्दर्य को उपालम्भ ,सत्य के शूल .

श्रद्धासुमन चढ़ा आगे बढ़ ,सम्भव हो टंगडी मार गिरा 
जैसे चाहे खौफ दिखा साम दाम दण्ड भेद चटा दे धूल .

कुछ कर गुजर कहीं भी पहुंच, किसी सोपान पर खड़ा 
हो प्राचीर कितना भी बड़ा अपनी जमीं कभी मत भूल 

सत्य कंटक अमरकंटक सा चुभता जरूर करता मगरूर 
शैल्य प्रक्रिया से गुजर धता बता ,प्रखर नवीन निर्मूल .

पग जिस पथ धरा निशानदेही बना ,पाषाण गिरे पिघल
यथार्थ से परे जहां गगन धरा से मिला ,क्षितिज समूल .-- विजयलक्ष्मी

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