"मालूम है हमे भूख को गाया नहीं जाता,
भूख की तड़प को कभी महसूस करके देखा
जब बात भूख की हो कविता का जन्म होता ।
भूख अपने में कुछ भी नहीं है यूंतो ,
देह की आभामण्डल देख विकरालता का अन्दाज होता
भूख को समझने की कोशिश में उलझते चले गये।
यार ,हम भूखे तो नहीं मगर भूखे होते चले गये ".-- विजयलक्ष्मी
भूख की तड़प को कभी महसूस करके देखा
जब बात भूख की हो कविता का जन्म होता ।
भूख अपने में कुछ भी नहीं है यूंतो ,
देह की आभामण्डल देख विकरालता का अन्दाज होता
भूख को समझने की कोशिश में उलझते चले गये।
यार ,हम भूखे तो नहीं मगर भूखे होते चले गये ".-- विजयलक्ष्मी
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