सुना है दर्द को दर्द की पहचान होती है ,
उसके बाद भी कोई न कोई लूट जाता है .
साथ चलने को ढूंढते रहते हैं काफिला
फिर भी कोई न कोई तन्हा छूट जाता है .
कोशिशे सम्भलने की करती हैं नदी सारी
उठती तूफ़ान सी लहरे तटबंध टूट जाता है
बहुत सम्भालना पड़ता है आईने सा चरित्र
कभी छिटका हाथ से अक्सर टूट जाता है
गलत कोई नहीं होता बशर्त मन न मैला हो
जब गलतफहमी हुयी पैदा रिश्ता रूठ जाता है -- विजयलक्ष्मी
उसके बाद भी कोई न कोई लूट जाता है .
साथ चलने को ढूंढते रहते हैं काफिला
फिर भी कोई न कोई तन्हा छूट जाता है .
कोशिशे सम्भलने की करती हैं नदी सारी
उठती तूफ़ान सी लहरे तटबंध टूट जाता है
बहुत सम्भालना पड़ता है आईने सा चरित्र
कभी छिटका हाथ से अक्सर टूट जाता है
गलत कोई नहीं होता बशर्त मन न मैला हो
जब गलतफहमी हुयी पैदा रिश्ता रूठ जाता है -- विजयलक्ष्मी
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