Saturday, 4 January 2014

हमे दरकार मुस्कुराहट की तुम्हारी ..






वक्त अपनी गति से चला जा रहा है ,
सूरज साँझ की ओर ढला जा रहा है
कुछ आम सी जिन्दगी को गुनगुनाले 
साथ मिलबांट लम्हों को ख़ास बना ले 
मुस्कुराहट की आहट होने दो होठो पर 
मरहम भी जरा लगने दो चोटों पर
आओ कुछ सीधे से लम्हों को बाँध ले
छोटी छोटी खुशियों को सबके दामन से बाँध दें 
पल पल जिन्दगी रीत रही है हमारी ,
जिन्दगी से फिरभी प्रीत रही है हमारी .
आओ कुछ पल गुजार दे साथ बैठकर
नदिया समय की न ठहर जाये ऐंठकर
चलो जलधार पर नाम लिख दे तुम्हारा
किया आपके नाम सबकुछ,अब कुछ बाकी कहाँ है हमारा
हमे दरकार मुस्कुराहट की तुम्हारी ...
बस इतने से जिन्दगी संवर जाएगी हमारी .- विजयलक्ष्मी

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