Monday, 6 January 2014

क्या तुम इंतजार करना छोड़ चुके हो ?

कह तो दिया तुमने इन्तजार मत करना ,
क्या तुम इंतजार करना छोड़ चुके हो ?

चल दिए सफर पर जिन्दगी रूकती कब है 
क्या उन राहों को देखना मुडके छोड़ चुके हो ?

जो बहता रहा लहू में दस्तक सुनती रही जो 
क्या दस्तक की आवाज से मुख मोड़ चुके हो ?

देह से निकलकर गयी रूह पहचानना तुम्हारा 
क्या उस रूह के अहसास को तोड़ चुके हो ?

ईमान बन चुका जो रास्ता जिन्दगी का
क्या पूछ लूं एक बात ,तुम ईमान छोड़ चुके हो ?-- विजयलक्ष्मी

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