Friday, 17 January 2014

दहक कर महकना सूरज की कला है ,

दहक कर महकना सूरज की कला है ,
इस कला ने मगर लाखों को छला है .

जो अग्रसरित हुआ है सूरज की डगर,
देख लो हुनर तुम भी , वो ही जला है.

ये अलग बात है देता है रौशनी मगर,
रौशनी की खातिर ही दीप भी जला है.

जलते है सभी शायद जो देते रोशनी ,
सितारा ख्वाहिशों का टूटा ही मिला है.

सितारों में भी चांदनी अकेली नहीं है
चाँद भी तो संग चांदनी के ही खिला है

मैं धरती ,वजूद तन्हा मिलता है कहां
सूरज से रौशनी, चाँद संग ही खिला है - विजयलक्ष्मी

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