जुबानों को हम-जुबाँ बना ही लेंगे वतन वाले ,
दर्द इतना है न झगड़ा हिन्दू मुसलमानों में रहे .
हम-वतन होकर बाते करते है क्यूँ वो गैरों जैसी
न बिछड़े घर कोई न कोई दुसरे के मकानों में रहे
कत्ल ए आम क्यूँकर गरीबों का ही होता है सदा
उन्हें बोलता नहीं जो खंजर लिए निजामों में रहे
मरता है गरीब इज्जत औ आबरू की खातिर सदा
कदम जमी पर मगर मेरे हौसले आसमानों में रहे
शोले आग के लेकर डराया नहीं करते मजलूम को
खौफ ए दरिया बही और उनके मुखौटे घरानों में रहे --- विजयलक्ष्मी
दर्द इतना है न झगड़ा हिन्दू मुसलमानों में रहे .
हम-वतन होकर बाते करते है क्यूँ वो गैरों जैसी
न बिछड़े घर कोई न कोई दुसरे के मकानों में रहे
कत्ल ए आम क्यूँकर गरीबों का ही होता है सदा
उन्हें बोलता नहीं जो खंजर लिए निजामों में रहे
मरता है गरीब इज्जत औ आबरू की खातिर सदा
कदम जमी पर मगर मेरे हौसले आसमानों में रहे
शोले आग के लेकर डराया नहीं करते मजलूम को
खौफ ए दरिया बही और उनके मुखौटे घरानों में रहे --- विजयलक्ष्मी
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