Tuesday 14 January 2014

शुभकामना मिलना ढेर सी और खुद का ढेर हो जाना ,

कुछ खो गयी लिपियाँ उनके निशान बाकी हैं ,
कुछ भाषाए ऐसी भी जिन्हें सीखना बाक़ी है .-- विजयलक्ष्मी


आज की हकीकत ,या शब्दों का फेर है ,
समझे न समझे "आप " के आगे ढेर है .-- विजयलक्ष्मी



बदला मौसम मोहसीकी बदलने लगी आपकी ,
देखते रहिये सीरत बदलती है या सूरत "आप" की .-- विजयलक्ष्मी



शुभकामना मिलना ढेर सी और खुद का ढेर हो जाना ,
राजनीती के जलवे चीखे गलत समझ का फेर हो जाना .-- विजयलक्ष्मी



लिख गया दिल पर तो कभी मिट न पायेगा ,
जिन्दगी भर रहेगा साथ और साथ ही जाएगा .-- विजयलक्ष्मी



टूटकर बिखरे तो क्या खुशबू है वो महकेगी ,
बसन्ती बयार बहेगी जब कलिया चटकेगी .--विजयलक्ष्मी





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