चलो हमने किया माफ़ मगर अपने दिल से पूछो,
गुस्ताखियाँ यही गर हमने की होती तो क्या होता.
सोचो मुहब्बत है कितनी हम खुद को भूल गए ,
इस हाल हम गर तुमको भूले होते तो क्या होता .
खुद को याद रखने का वक्त न रहा क्या बताए,
अजब सा वक्त है तुम भी होते संग, तो क्या होता.
दर्द ए दिल औ दर्द ए दुआ भी दिखने लगा असर,
यादें है तुम हों हम है कोई न होता तो क्या होता ,
सफर तन्हा कैसे कहे अब तन्हा भी नहीं हम,
हाल ए दिल हमारा, तुम्हारा हुआ होता तो क्या होता.-- विजयलक्ष्मी
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