Wednesday, 3 October 2012



जब कुछ जीवन के फलसफे अनछुए से रह जाते है...
आँखों की सरहद पर शबनमी मोती बिखर जाते है,
घिरती है जब जमीं सहरा के समन्दर से दूर तलक ,
कोई अंकुरण फिर पनप जाये ,मगर आसान भी नहीं .
जिंदगी थमती नहीं मगर ,उजड कर भी बसती है अगर ...
अपने सूरज के साथ जिंदगी नृत्य करती जरूर है .-- विजयलक्ष्मी



No comments:

Post a Comment