खू का बहना और सुर्खी में आना जुदा नहीं ..
आइना दिखा गया सूरत मगर जुदा नहीं
बुलंदियों की चाहत मुझे न हों सकी अमीत
आता कर दिया फर्ज इज़हार ए दिल इल्तजा यही
दरिया को बहना मुहब्बत की खातिर दर्द की
बेनकाब चेहरे पे दर्द की शिकन ,क्यूँ दुआ नहीं
मेरे मोहसिन ने माँगा ही इतना याद में तडप
तडपना याद कर इसके सिवा कोई दुआ नहीं ..-विजयलक्ष्मी
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