Tuesday, 9 October 2012

न आवाज दी कभी तुमने ...

आंसूओ का हिसाब तो अभी माँगा ही नहीं तुमसे ,
और तुमने मुकरने की ठान ली ,खफा होने के डर से .

न बहा आँसू इसकदर , बरसात भी खौफ खाने लगे ,
कर लिया बंद पलकों में मुझे , मेरे बिखरने के डर से.

गर हवा मैं बन जाऊँ और उडती फिरूं जहाँ में सारे ,
न रोक लेना तुम सांस अपनी ,मेरे खो जाने के डर से.

खौफ तारी रहा क्यूँकर ,क्यूँ मिटाते रहे नाम खुदका ,

न आवाज दी कभी तुमने , मेरे बिफर जाने के डर से.

ए जिंदगी बरस अहसास भर के सावन से खुद में ,
पहाड़ी जल का सोता सा , ठहरा है बह जाने के डर से.-- विजयलक्ष्मी

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