Monday 1 October 2012

सूरज ली बज्म में सजदा हों कबूल अपना भी ..


जिन्दा रख मुझको अहसास में बहुत है ,
मशाल गर जलानी है चिंगारी ही बहुत है,
क्यूँ तलाशते हों बवंडरों को दुनिया में ...
खुद के भीतर भी कम नहीं तूफ़ान बहुत है.
मुश्किल में है इंसान इंसानियत रो रही ,
ढूंढोगे गर तुम ,मुझमे भी हैवान बहुत है . 
आम आदमी ,त्रस्त हों रहा महंगाई से, 
मौका मिले बता दे ,वो खास भी बहुत है .
ख़ामोशी ,इस हद तलक कि सवाल उठ रहे,
जज्बात जज्ब करने का जज्बा भी बहुत है .
नाप ले कितना नाप सकता है कोई देखेंगे ,
धरती की जिंदगी को सूरज का साथ बहुत है .
दर ओ दरख्तों पर सिद्धन्तों के किवाड़ हैं ,
झाँकने की कोशिश में गली से गुजरते बहुत है.
सितारों की तमन्ना क्यूँ, चाँदनी गुलजार है,
रोशन शमा हों गर जलते परवाने बेमौत है.
सूरज की बज्म में सजदा हों कबूल अपना भी,
पत्थर के सामने भी सर झुकाने वाले बहुत हैं .
 विजयलक्ष्मी

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