Monday, 1 October 2012

कदम बढा लेते हैं ...



आओ चलो कुछ देर ही सही मुस्कुरा लेते है .
भूलकर गम थोडा सा खुद को बहला लेते है .
झूम लेते है हवाओं के संग तरानों में उसके .
नदियाँ की लहरों के संग जरा इठला लेते हैं .
बरस लेते है बदरा संग अफसानों में बूंदों के 
चलो आज हम भी भौरों संग गुनगुना लेते है. 
गुलों सा खिल के महका देते है बगिया को , 
चलो कुछ देर चमन में पंछी सा चहक लेते है. 
जीवन की डगर मुश्किल होती ही है तो क्या ,
ठहरेंगे कहाँ मालूम नहीं, कदम बढा लेते है.
 विजयलक्ष्मी

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