आओ चलो कुछ देर ही सही मुस्कुरा लेते है .
भूलकर गम थोडा सा खुद को बहला लेते है .
झूम लेते है हवाओं के संग तरानों में उसके .
नदियाँ की लहरों के संग जरा इठला लेते हैं .
बरस लेते है बदरा संग अफसानों में बूंदों के
चलो आज हम भी भौरों संग गुनगुना लेते है.
गुलों सा खिल के महका देते है बगिया को ,
चलो कुछ देर चमन में पंछी सा चहक लेते है.
जीवन की डगर मुश्किल होती ही है तो क्या ,
ठहरेंगे कहाँ मालूम नहीं, कदम बढा लेते है.
विजयलक्ष्मी
No comments:
Post a Comment