कलम से..
Monday, 1 October 2012
ख्वाब में भी ख्वाब का ही ख्वाब देखा करते है अक्सर,.
दीदार ए चाँद कि ख्वाहिश सभी रखते है अपने दिल में ,
चाँद से भी पूछिए क्या हसरत छिपाए है अपने दिल में .
ख्वाब में भी ख्वाब का ही ख्वाब देखा करते है अक्सर,
हकीकत,दर्द औ सितम से कब करती गुरेज महफ़िल में .
-- विजयलक्ष्मी
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