Monday, 15 October 2012

कैसे रखे सम्भालकर ...

सैलाब गर उठा जो अपने पूरे उफान पर ..
कहना न फिर नजर लग गयी तूफ़ान पर 

बह जायेगीं लहरें किनोरों को तोड़ कर 
कदमों तले जमी न मिलेगी उठान पर 

रहने दे थमा सागर को न देख क्या होगा 
जज्बा ए सुनामी न रख दे घर उजाड कर


अमीत जिंदगी मिटा जाती है लहरें गर
जन्म भी कम पडेगा कैसे रखेंगे सम्भाल कर .-विजयलक्ष्मी 

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