Friday, 12 October 2012

बरसात भाती है ,







बरस जितना भी बरसना बरसात भाती है ,

रिमझिम सी फुहार जब भीगती है धरा ...
मुस्कुराती है ,रंग बिरंगे पुष्प खिलाती है ,
महक उठती है नाचती और गाती है धरा .
खिलखिलाती है, कायनात ही रंग जाती है ,
सुनहरी याद के पंखो पे सैर कर आती है धरा .
----विजयलक्ष्मी

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