गुरुर ए इश्क हो या सुरूर ए इश्क सोने कब देता है ,,
है चाँद की पहरेदारी ,, सीने में दिल ही कब होता है ||
दर्द औ जख्म मुक्कमल, जरूरी दस्तावेज सम्भाले
हंसना ,,गाना ,, रूठना - मनाना ,,ये ही सब होता है ||
उचककर खुलती हैं ख्वाहिश गिरह बांधती खोलती ,,
पलकों पर सब्ज नमी संग शबनमी मनसब होता है ||
दफन नफरतों को उजागर करता है यूँ रकीब कोई ,,
लहरता हुआ सा समन्दर.. डूबता सा दरख्त होता है ||
लिए पतवार नाखुदा बूझता है पहेली सी हर दफा ,,
जुगनू चमकता है अँधेरे में दिन में उजाला कब होता है ||
ढलती साँझ में सूरज भी डूबता है याद की नदी में ,,
दहकता है अहसास लिए बताओ सूरज कब सोता है || --------- विजयलक्ष्मी
सूरज बनने की ख्वाहिश दहकाती रही ,,
महकने से पहले ही चाँद बना दिया गया || ------ विजयलक्ष्मी
वाह....बेहतरीन।
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