पाँव देहलीज पर ठहरे ,लगे सामाजिकता के पहरे
बताओ दर्द की लहरें हमे नहलाये भी न भला कैसे ?
बताओ दर्द की लहरें हमे नहलाये भी न भला कैसे ?
अंकुरित पौध को हवा खाद पानी की जरूरत बहुत
बंजर जमीं पर कैक्टस उग आयें भी न भला कैसे ?
बंजर जमीं पर कैक्टस उग आयें भी न भला कैसे ?
नयन कजरारे बदरा से भरे ठहरी हुई जलधार है
हालात पर दिल के होठ मुस्कुराएँ भी न भला कैसे ?
हालात पर दिल के होठ मुस्कुराएँ भी न भला कैसे ?
रोटी घास की खाकर बिलखते भूख से बच्चे किन्तु
राणा के वंशज दाल-रोटी खपाए भी न भला कैसे ?
राणा के वंशज दाल-रोटी खपाए भी न भला कैसे ?
वो लड़ते आन की खातिर ,जीवन मान की खातिर
मातृभूम-हित समर्पित मन जगाए भी न भला कैसे ?
मातृभूम-हित समर्पित मन जगाए भी न भला कैसे ?
जिन्हें रोटी की चिंता सताती है, दीवाना कहे कैसे
भगतसिंह सुभाष की हालत पढाये भी भला कैसे ?
भगतसिंह सुभाष की हालत पढाये भी भला कैसे ?
खरा उतरने की तमन्ना में भट्टी पर चढ़ बैठे जो
चाहे बनना आभूषण उन्हें तपाये भी न भला कैसे ?
चाहे बनना आभूषण उन्हें तपाये भी न भला कैसे ?
होठ हंसते रहे लेकिन सुलगते अंगार हो दिल में
तपिश से खिलते हुए सपने सताये भी न भला कैसे ? --- विजयलक्ष्मी
तपिश से खिलते हुए सपने सताये भी न भला कैसे ? --- विजयलक्ष्मी
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