हर मोड़ जिन्दगी को सफर नया देता है ,,
डरते है बिछड़ने से बीतते लम्हों की छूटने से ||
डरते है बिछड़ने से बीतते लम्हों की छूटने से ||
रौशनी से खौफ था अँधेरे भी सुकू न दे सके
जलते रहते हैं भीतर वही सितारों सा टूटने से ||
जलते रहते हैं भीतर वही सितारों सा टूटने से ||
जागते हैं ख्वाब पलकों पर बैठकर हमारी
सोते नहीं है पलभर साथ डरते रहे छूटने से ||
सोते नहीं है पलभर साथ डरते रहे छूटने से ||
जवानी सम्भलती कैसे तन्हाई गले मिली
होश औ हवास खोकर भी बचते रहे लुटने से || ---- विजयलक्ष्मी
होश औ हवास खोकर भी बचते रहे लुटने से || ---- विजयलक्ष्मी
" इबादत को यूँही मसखरी न समझना यारों ,,
ये दोस्ती खुदाई नियामत है हमारी खातिर
बादल भी कर गया है छिडकाव मेरे दर पर
धो दी गयी है हर राह घर की ,उनकी खातिर
मलाल भी करें क्या वक्त की कमी का उनसे
यादें ही तसल्ली बख्श समझी हमारी खातिर |" --- विजयलक्ष्मी
ये दोस्ती खुदाई नियामत है हमारी खातिर
बादल भी कर गया है छिडकाव मेरे दर पर
धो दी गयी है हर राह घर की ,उनकी खातिर
मलाल भी करें क्या वक्त की कमी का उनसे
यादें ही तसल्ली बख्श समझी हमारी खातिर |" --- विजयलक्ष्मी
ये मुहब्बत है अजब रंगी ढूंढते रहते है गैर
है चाहत मगर वफा के चर्चे हो शहर शहर ---- -विजयलक्ष्मी
है चाहत मगर वफा के चर्चे हो शहर शहर ---- -विजयलक्ष्मी
रौनकें महफिल आज अजीब ही अफसाना था
कोई सजा चाहता था खुदारा खुद की खातिर
अजब कोई था कि मुआफी दिए ही जा रहा था ---विजयलक्ष्मी
कोई सजा चाहता था खुदारा खुद की खातिर
अजब कोई था कि मुआफी दिए ही जा रहा था ---विजयलक्ष्मी
कैसे खुश करु सबको
मुझे वतन से मुहब्बत हो गई
दुनिया स्वार्थ पर टिकी
देशप्रेम अपनी इबादत हो गई
देह रंग हुआ करे सुनहरा
लहू से रंगबिरंगी इबारत हो गई
महकते ख्याल औ ख्वाब पर
वतनपरस्ती की इमारत हो गई
पतझड़ का मौसम है तो क्या
खामोशी ही जैसे बगावत हो गई --- विजयलक्ष्मी
मुझे वतन से मुहब्बत हो गई
दुनिया स्वार्थ पर टिकी
देशप्रेम अपनी इबादत हो गई
देह रंग हुआ करे सुनहरा
लहू से रंगबिरंगी इबारत हो गई
महकते ख्याल औ ख्वाब पर
वतनपरस्ती की इमारत हो गई
पतझड़ का मौसम है तो क्या
खामोशी ही जैसे बगावत हो गई --- विजयलक्ष्मी
खामोश शहर पत्थरों से वाबस्ता हुआ था ,
देखते हैं आज पत्थरों में भी बहुत शोर है -- विजयलक्ष्मी
देखते हैं आज पत्थरों में भी बहुत शोर है -- विजयलक्ष्मी
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