Sunday 29 January 2017

" गुरुर ए इश्क हो या सुरूर ए इश्क सोने कब देता है ,,"

गुरुर ए इश्क हो या सुरूर ए इश्क सोने कब देता है ,,
है चाँद की पहरेदारी ,, सीने में दिल ही कब होता है ||

दर्द औ जख्म मुक्कमल, जरूरी दस्तावेज सम्भाले
हंसना ,,गाना ,, रूठना - मनाना ,,ये ही सब होता है ||

उचककर खुलती हैं ख्वाहिश गिरह बांधती खोलती ,,
पलकों पर सब्ज नमी संग शबनमी मनसब होता है ||

दफन नफरतों को उजागर करता है यूँ रकीब कोई ,,
लहरता हुआ सा समन्दर.. डूबता सा दरख्त होता है ||

लिए पतवार नाखुदा बूझता है पहेली सी हर दफा ,,
जुगनू चमकता है अँधेरे में दिन में उजाला कब होता है ||

ढलती साँझ में सूरज भी डूबता है याद की नदी में ,,
दहकता है अहसास लिए बताओ सूरज कब सोता है || --------- विजयलक्ष्मी



सूरज बनने की ख्वाहिश दहकाती रही ,,
महकने से पहले ही चाँद बना दिया गया || ------ विजयलक्ष्मी

1 comment: