" नहीं मालूम
कुछ बकाया बची भी है नहीं
जिन्दगी ,,क्या भरोसा करूं तुम्हारा
क्यूँ दौड़ लगाऊँ भला तुम्हे पाने को
तुम तो चल ही रही हो ऊँगली पकडकर मेरी
मैं चाहूं तो भी ..नहीं थाम सकती तुम्हे
सबकुछ तुम चाहो तभी तक
फिर भला क्यूँ दौड़ लगाऊ ,,
तुम्ही बताओ न ...........
तुम छौडोगी हाथ ..मगर ..
अकेला नहीं छोडोगी मुझे ..
मेरी नई संगिनी कर दोगी साथ ..
फिर खौफ क्यूँकर हो मुझे ..
मुझे तो चलना है ..बस
फिर भला क्यूँ दौड़ लगाऊँ
तुम्ही बताओ न .........
जो मेरा है तुम छीन नहीं सकती मुझसे
जो पराया उसे मिलने नहीं दोगी मुझसे
प्रयास सफल या असफल क्यूँकर सोचूँ
चलना ही है मुझे चल रही हूँ
मुकाम मिले या न मिले
नहीं मालूम
हर कदम जैसे पहला सा है
और.. और हर कदम आखिरी सा
कहाँ ठहरू ,इस मध्यांतर को समेटूं कैसे
जलकर या पिघलकर ..
नदिया सा बहकर समन्दर सा गहरकर
फिर भला क्यूँ दौड लगाऊँ
तुम्ही बताओ न .......
नहीं मालूम
कुछ बकाया बची भी है नहीं
जिन्दगी ,,क्या भरोसा करूं तुम्हारा
क्यूँ दौड़ लगाऊँ भला तुम्हे पाने को
तुम तो चल ही रही हो ऊँगली पकडकर मेरी
मैं खुश हूँ पाकर साथ
मैं खुश हूँ पकडकर हाथ
मैं खुश हूँ सपनों को जीकर
मैं खुश हूँ अपनी तन्हा सी तन्हाई में
मैं खुश हूँ अपने कदमों के साथ
मैं खुश हूँ अपने मौन में ख़ामोशी को निहार
मैं खुश हूँ अपनी यादों में
मैं खुश हूँ तुम्हारे वादों में
मैं खुश हूँ सीमांत इकाई बनकर
मैं खुश हूँ ...हाँ मैं खुश हूँ
क्यूँ मौका दूं तुम्हे खुश होने का
मुझे दुःख भी प्यारे लगे ,,
मुझे टूटन भरे सुहाने लगे
मुझे हर वो लम्हा भाया तब टीस रही मुझमे
क्यूंकि ...उसी समय मैं अपने साथ थी
अब तुम्ही बताओ
जिन्दगी ,,क्या भरोसा करूं तुम्हारा
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शुक्रवार 13 जनवरी 2017 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteसुन्दर भाव और सरल अभिव्यक्ति
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