Tuesday, 17 January 2017

" न मालूम इश्क किये होता है कि हुए होता आप ,,"



न मालूम इश्क किये होता है कि हुए होता आप ,,
बीमार ए इश्क बताये कोई ,क्या है इसका राज
--- विजयलक्ष्मी


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तकदीर में जुदाई तस्वीर से नदारत ,,
तासीर में शामिल वफाओ की तरह ||

वाह री मुह्हबत दर्द ओ सितम तेरे ,,
क्यूँ लगते हैं भले अदाओं की तरह ||

रुसवाइयों के चलते खामोश सिसकियाँ ,,
खुदाई नियामत सुने गुनाहों की तरह ||

अजब दास्ताँ है बिछड़ कर न बिछड़े ,,
साथ रहती है पलपल दुआओं की तरह ||

गजब घरौंदा है गूंगे के गुड की मिठास ,,
खनकती है हर बात फिजाओं की तरह ||
--------- विजयलक्ष्मी

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वाह ,,अजब दास्ताँ खुदाई नियामत की हद ज्यूँ 
खुशामदीद बेहतर भला खुशामद की आमद क्यूँ ? ---- विजयलक्ष्मी


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जिसमे खुशामद भरी हो स्वार्थ के अंश लगते शामिल ,,
मुहब्बत की तासीर हवाओं में घुल होती आप शामिल || --------- विजयलक्ष्मी


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खुदाई नियामत है तो तकदीर क्यूँ सोती देखी ,,
फिर ,,गम ए इश्क में जिन्दगी क्यूँ रोती देखी ,,|| ---------- विजयलक्ष्मी









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