" सच कहूं या अफवाह ,नहीं बोला है
फिजा में ये किसने जहर घोला है ||
कदम ढूंढते जिन्होंने कांटे बोये है
चुप सभी शातिर कोई नहीं बोला है ||
वो रोड़े राह के उनके पाँव मानुष से
बचने के लिए नई वो बात खोला है ||
है राख दिखती सामने नजर के यूंतो
दबा हुआ उसमे स्वार्थ का शोला है ||
मुझे सब अनघड ही कहेंगे ,, पता है
याद रखना सियासत अलग चोला है ||
इन्सान को न जाति धर्म में बदलो
न्याय को कब एक तराजू तोला है ||
अलग है बाँट रंग रंग के धरे उसने
झांको रूह में कालिख रंग घोला है ||
सियासत में धोखे देने वाले कदम कदम
ईमान-तराजू पर किसने पत्ता खोला है ||" ----------- विजयलक्ष्मी
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