है बेगैरत सूरज भी साम्प्रदायिकता फैलाता है ,,
इसे भी उगते .. डूबते हुए केसरिया रंग भाता है ||
चाँद को समझाया कितना सुनता ही नहीं है
कौन धर्म में त्यौहार पर कभी पूर्णिमा मनाता है ||
काश सितारों से यूँ शिकवे शिकायत न होती
एक नहीं सप्तको के मंडल में भी ऋषि बिठाता है ||
कैसे कायनात, दुश्मनी दिखाती है क्यूँ भला
ईश्वरीय बद्री,बरगद, तुलसी,दूब से बताया नाता है ||
समझाया कई बार तजे केसरिया बाना अब
जबसे इस दुनिया में आया इससे अपना नाता है ||
डरकर बदले रंग वही हमे क्यूँ आँख दिखाते हैं ,,
कब किसी का हुआ सगा जो पुरखो को भूल जाता है ||
नारजगी की बात पर मुस्काया खिलखिलाया
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