जीवन की अलिखित कविता को स्वर जिसने दिया ,,
बाकि करते रहे दिखावा ,ये जीवन तो उसी ने जिया ||
बाकि करते रहे दिखावा ,ये जीवन तो उसी ने जिया ||
पथिक बहुत मिलते रहते हैं ,, सहभागी सहचर कहाँ ,,
कंटक चुभे चुभते ही रहेंगे, दर्द उसीका जिसने पिया ||
कंटक चुभे चुभते ही रहेंगे, दर्द उसीका जिसने पिया ||
राजपथ पर हैं वही जिनके सोने के चम्मच थे मुख में ,,
जनपथ कर्मपथ बना उसीका भूख को जिसने जिया ||
जनपथ कर्मपथ बना उसीका भूख को जिसने जिया ||
वार लिए फिरता है देखो,, धार कुंद क्यूँकर है आज ,,
कलम बने तलवार वही भावों का गरल जिसने पिया ||
कलम बने तलवार वही भावों का गरल जिसने पिया ||
युगयुगीन धरोहर अपनी क्यूँ लुटती देखी चौराहों पर ,,
राष्ट्रपथ चढ़े वही तज अहम स्वाभिमान जिसने जिया ||
राष्ट्रपथ चढ़े वही तज अहम स्वाभिमान जिसने जिया ||
सत्य कहूँ पर्दे की लीला जिसने औरत को ही लीला ,,
अदनाभाव है मन के भीतर का औरत ने हरबार जिया ||
अदनाभाव है मन के भीतर का औरत ने हरबार जिया ||
गर मान नहीं दे सकते तुम पिंजरे में तो मत कैद करो,,
स्नेह समर्पण सरल ह्र्दया ने छलकपट हर बार जिया || ------- विजयलक्ष्मी
स्नेह समर्पण सरल ह्र्दया ने छलकपट हर बार जिया || ------- विजयलक्ष्मी
No comments:
Post a Comment