Wednesday, 9 July 2014

" या फिर तुम्हे गंगाधर बनना पड़ेगा..."

नजरे खोज रही थी तेरी तस्वीर 
उसी दीवार पर....जख्म बकाया दिखे रिसते हुए 
नित्य ही दरवाजे पर बजती हैं घंटी ..लगती हैं निरर्थक सी 
इन्तजार ...इन्तजार ही रहेगा उम्रभर शायद ..लेकिन मन नहीं मानता 
लगता है तुम लौटोगे जरूर ..एक दिन 
न तुम आये न तुम्हारी जिसे तुम उतारकर ले गये 
खाली होकर भी ख़ाली नहीं है 
मेरी रूह टंगी है उसी खूंटी पर उसी दिन से 
वो अक्स बकाया है मुझमे बसा ...तुम उस अक्स को नहीं उतार पाए 
हां उन्ही सीमओं रेखाओ में बंद है ,,
जिन्हें तुम स्वयम खींचकर गये हो ...
सवाल तो सभ्यता कर ही नहीं सकती हक ही नहीं है बस जवाब बनती है
इसीलिए शायद सीता भी धरती में समाई थी ..
क्यूंकि राम ने कुछ सवाल सीता की आँख में पढ़े और त्याग दिया
कैसे सामना करते नित्य ही उगते सवालों का ,,
उपाय यहीं सूझा ...राम से तुम भी उसी राह चल पड़े त्यागकर
सोचकर देखना ...एक सवाल से बचने के लिए सवालों की दीवार तुम्हारे भीतर बन गयी
तोड़ पाओ तो मुझे बताना ...
क्या जवाब मिले ?
जरूरत नहीं इच्छा है जानने की ..यदि सम्भव हो ,
यूँभी तुम ....कहते कब हो ...फिर भी हर आवाज चीखती सी पहुंच ही जाती है
जिन टुकडो को साथ ले गये हो ...चाहो तो फेंक सकते हो
क्या करोगे सम्भाल कर ..
व्यर्थ दर्द ही देंगे तुम्हे
कुछ विचार तुम्हारी तन्द्रा भंग करते रहेंगे हमेशा
वापिस तुम करोगे नहीं ...
उसके लिए तुम्हे आना पड़ेगा या ..
या फिर मुझे बुलाना पड़ेगा जो सम्भव ही नहीं है शायद
हाँ ...चस्पा देना नगर श्यामपट पर ...
पहुंच ही जायेंगे ..आते जाते ,,हवा के संग या किसी के काँधे सवार होकर
कभी कभी लगता है तुम ही वो प्रश्नपत्र हो ...
जिसके इंतजार में थी रूह आजतक
लेकिन हल भी मिलेगा या नहीं ...
नहीं मालूम ?
या अभी कुछ और बकाया है कहीं ..कहा नहीं जा सकता
समय धार पर सवार है मझधार में लडखडाते से
डूबते उतरते से ...कलम को पतवार बनाने की कोशिश में
हम कोलम्बस नहीं है हमे मालूम है
बस एक खाली सी दीवार ,,तपती सी हवा ...बिन पानी के बादल
सूखी सी नदी ,,सहारा की नागफनी से चुभते है ..
यही गुण है ..यही अवगुण है
बाकि तुम बेहतर जानते होंगे ..
क्यूंकि हर फैसला तुम ही करते हो ..
मैं ....मुझे तो मानना है बस
तुम पुरुष ....और मैं नारी .......
क्यूंकि लक्ष्मीबाई दूसरे के घर में ही अच्छी लगती है
या फिर तुम्हे गंगाधर बनना पड़ेगा
|---- विजयलक्ष्मी

2 comments:

  1. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति, कृप्या पोस्ट का शीर्षक लिखिये।

    आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (11.07.2014) को "कन्या-भ्रूण हत्या " (चर्चा अंक-1671)" पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, वहाँ पर आपका स्वागत है, धन्यबाद।

    ReplyDelete
  2. प्रभावशाली अभिव्यक्ति..

    ReplyDelete