" आओ कुछ तितलियाँ उड़ाते हैं गुलो पर
कुछ भ्रमर बुलाकर गुंजार मचाते है चमन में
रात के अँधेरे को बंद करलेते है हथेलियों में अपनी
सितारों को जुगनूं बना घुमाते हैं गगन में
बैठकर ख्वाबों के उडनखटोले पर सैर करे आसमान पर
चंदा का हाथ पकड़ सूरज को आवाज लगाये
गुलों को गगन में सजा आये
क्या हो अगर इन्द्रधनुष धरती पे हो खिला
टोफियों का पेड़ धरती पर उतर आये
आँखमिचौली खेलते हम बादलो में छिप जाये
बून्द बनकर सहारा के रेत को महकाए
हर चेहरे पे मुस्कुराहट हो गम सबके चुरा लाये
बाँट सके ख़ुशी किसी बंद थैले से निकाल, जिन्दगी गम से उबर जाये "--- विजयलक्ष्मी
कुछ भ्रमर बुलाकर गुंजार मचाते है चमन में
रात के अँधेरे को बंद करलेते है हथेलियों में अपनी
सितारों को जुगनूं बना घुमाते हैं गगन में
बैठकर ख्वाबों के उडनखटोले पर सैर करे आसमान पर
चंदा का हाथ पकड़ सूरज को आवाज लगाये
गुलों को गगन में सजा आये
क्या हो अगर इन्द्रधनुष धरती पे हो खिला
टोफियों का पेड़ धरती पर उतर आये
आँखमिचौली खेलते हम बादलो में छिप जाये
बून्द बनकर सहारा के रेत को महकाए
हर चेहरे पे मुस्कुराहट हो गम सबके चुरा लाये
बाँट सके ख़ुशी किसी बंद थैले से निकाल, जिन्दगी गम से उबर जाये "--- विजयलक्ष्मी
No comments:
Post a Comment