Thursday, 17 July 2014

" कोख कुचली जिसकी वो औरत ......"


कुरेदकर गर्भ की दीवार ,,
काट डाला अंग प्रत्यंग 
मारी गयी काटकर औरत 
कोख कुचली जिसकी वो औरत 
फैसला पुरुष का ,,
लड़का जनेगी तो पूजी जाएगी
तू माँ तो बनेगी ..
बिगड़ा तो नाम दुनिया तुझे ही धरेगी
सुधर गया तो हकदार है पुरुष
अगर जिन्दा रह गयी कोई जिन्दगी
पढ़ेगी बढ़ेगी औरत
पल्लू और चार दिवारी का सच सहेगी औरत
क्या बनेगी फैसला पुरुष का
जिन्दगी जियेगी औरत
साथ देने को तैयार रहे औरत ..
क्या करना है फैसला पुरुष का
लडकी हुई सयानी ..
उम्र हुई ब्याहनी ..पसंद करेगा पुरुष
तू आटे की लोई ..
तेरी इच्छा ..तेरा फैसला मायने नहीं कोई ,,
घर तुझसे बनता है ,,सुना है केंद्र होती है औरत ,,
उस केंद्र को परिछादित करता पुरुष ,,
सुना है आधी दुनिया का वारिसाना हक है तुझे ए औरत ...
लेकिन ...
तू मुहब्बत की हकदार है या नहीं
कितने पल तेरे हिस्से ..तू जायदाद है ,,
बस यही तेरी अंतिम औकात है ..
यही फैसला ..है ,,समाज का कर्ताधर्ता है पुरुष
--- विजयलक्ष्मी



"माँ सच कहना क्या बोझ हूँ मैं 

इस दुनिया की गंदी सोच हूँ मैं 
क्या मेरे मरने से दुनिया तर जाएगी 
सच कहना या मेरे आने ज्यादा भर जाएगी
क्यूँ साँसो का अधिकार मुझसे छीन रहे हो 
मुझको कंकर जैसे थाली का कोख से बीन रहे हो 
क्या मेरे आने से सब भूखो मर जायेंगे 
या दुनिया की हर दौलत हडप कर जायेंगे 
पूछ जरा पुरुष से ,
"उसके पौरुष की परिभाषा क्या है "
जननी की जरूरत नहीं रही या 
जन लेगा खुद को खुद ही ?
हर मर्यादा तय करके भी उसको चैन नहीं 
भोर नहीं होती जब होती रैन नहीं 
कह देना कह देना दुनिया में तो उसको मुझे लाना होगा 
वरना आगमन को पुरुष को खुद ही समझाना होगा 
जितना मुझको लील रहा है कह देना 
दर्द बेटे न मिलने का फिर सह लेना 
वंशबेल की शाख अधूरी रह जाएगी 
पूरी होगी तभी 
" जब लडकी धरती पर आएगी " "
.--- विजयलक्ष्मी

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