Friday, 4 July 2014

वाह रे दिल,क्या खूब मुहब्बत निभाई तूने...||

आज क्यूँ न खिलखिलाकर हंस दूं खुद पर ,
वाह रे दिल,मुहब्बत क्या खूब निभाई तूने ||

लो देखो ,,,बारात ही चली आई दर पर मेरे
अबतक शहनाई सत्य की खूब सुनाई तूने ||

ईमान खूब वफा निभाता रहा सदा से अपना 
रस्म ओ रिवाज दुनियावी खूब सिखाई तूने ||

समझाया था दीवानगी अच्छी नहीं लेकिन
आरजू औ नवाजिश बहुत खूब निभाई तूने||

जिन्दगी भी किस मोड़ पर आ पहुंची अपनी 

सजा ए मौत मिली, चिता खूब सजाई तूने ||--- विजयलक्ष्मी 

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