आज क्यूँ न खिलखिलाकर हंस दूं खुद पर ,
वाह रे दिल,मुहब्बत क्या खूब निभाई तूने ||
लो देखो ,,,बारात ही चली आई दर पर मेरे
अबतक शहनाई सत्य की खूब सुनाई तूने ||
ईमान खूब वफा निभाता रहा सदा से अपना
रस्म ओ रिवाज दुनियावी खूब सिखाई तूने ||
समझाया था दीवानगी अच्छी नहीं लेकिन
आरजू औ नवाजिश बहुत खूब निभाई तूने||
जिन्दगी भी किस मोड़ पर आ पहुंची अपनी
सजा ए मौत मिली, चिता खूब सजाई तूने ||--- विजयलक्ष्मी
वाह रे दिल,मुहब्बत क्या खूब निभाई तूने ||
लो देखो ,,,बारात ही चली आई दर पर मेरे
अबतक शहनाई सत्य की खूब सुनाई तूने ||
ईमान खूब वफा निभाता रहा सदा से अपना
रस्म ओ रिवाज दुनियावी खूब सिखाई तूने ||
समझाया था दीवानगी अच्छी नहीं लेकिन
आरजू औ नवाजिश बहुत खूब निभाई तूने||
जिन्दगी भी किस मोड़ पर आ पहुंची अपनी
सजा ए मौत मिली, चिता खूब सजाई तूने ||--- विजयलक्ष्मी
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