Tuesday 4 March 2014

" कितनी मुश्किल से..."






















कितनी मुश्किल से धकेला साँझ को हमने ,
चाँद को झुरमुट में छिपा दिया देखते देखते .

कितनी मुश्किल से वक्त से छीने कुछ पल 
वक्त कितनी जल्दी छोड़ दिया देखते देखते.

कितनी मुश्किल से आये थे दौडकर मिलने
इन्तजार छोड़कर चले गये क्यूँ देखते देखते .

कितनी मुश्किल होते हैं लम्हे इन्तजार के
रात हुयी लम्बी अँधेरे हाथ में देखते देखते.

कितना मुश्किल है समेटना अहसास खुद में
बिखर न जाये हम राह तुमारी देखते देखते .-- विजयलक्ष्मी










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