Sunday, 2 March 2014

मौन बोलता नहीं

मौन बोलता नहीं नद सा उछलकर 
मौन लहराता है समन्दर में बदलकर 
मौन बहता है लहू में पिघलकर 
मौन दहकता है सूरज सा जलकर 
मौन बरसता है बादलों से निकलकर 
मौन ठहरा है ,,रात में बात में ..भोर में शोर में ..
जीवन के ठौर में ..
खेत में ..बीज में 
मौन खड़ा है सडक के दोनों और धुप में तप रहा है 
मौन के घर की दीवारे ढह चुकी है 
मौन रहता है आसमान की छत वाले घर में
निहारता है चाँद को चांदनी में बसकर निश्छल सा
बसता है भीतर मेरे और तुम्हारे .." निशब्द सा "
मौन को मौन ही रहने दो ..
चीखेगा एक दिन जब ...मुखर होकर
चीरकर भीतर तक उभरे सन्नाटे से
तब दुनिया दहल उठेगी एक दिन ..देखना तुम भी .- विजयलक्ष्मी

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