Monday 10 March 2014

" न होकर भी होना तेरा ,भला ये कैसी याद है "

उदासी के तेल से याद का इक दीपक जला लिया जाये ,

जलती हुयी लौ को देखकर क्यूँ न मुस्कुरा लिया जाये .- विजयलक्ष्मी




कोई भी दोस्त कभी यूँही बे-वफा नहीं होता ,
जाने वफा का कौनसा वादा यूँ निभाया होगा .--विजयलक्ष्मी



बेजुबाँ अहसास बोलते नहीं ,किसी और का ढंग तौलते नहीं ,

जिन्दगी कैसी भी राह चले चलते हैं संग ही कभी डोलते नहीं .- विजयलक्ष्मी





नगमा औ साज भी सजता है अहसास के साथ ,

जिन्दगी का हर लम्हा रंगता है अहसास के साथ 


यादे किसको कहूं कैसे याद दिलाऊँ याद को भी ...


महफिलों में यादे के दीप जलते है अहसास के साथ .-- विजयलक्ष्मी





किसी शबनमी शरारे की शरारत भी याद है ,

भूली हुयी सी दुनिया की दस्तक भी याद है ,


बीतते हुए पलो का घुलना लहू सा मुझमे ...


न होकर भी होना तेरा ,भला ये कैसी याद है.- विजयलक्ष्मी

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